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महाराणा सज्जन सिंह: मेवाड़ के प्रगतिशील और द्रष्टा शासक

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महाराणा सज्जन सिंह, मेवाड़ राजवंश के 72वें शासक, अपनी प्रगतिशील सोच और सामाजिक सुधारों के लिए प्रसिद्ध थे। वे महाराणा शंभु सिंह के दत्तक पुत्र और उत्तराधिकारी थे। 1874 में, नाबालिग अवस्था में उन्हें मेवाड़ की गद्दी पर बिठाया गया, और 1876 में बालिग होने पर उन्हें विधिवत ताज पहनाया गया।

उनका शासनकाल भले ही छोटा रहा हो, लेकिन उनकी उपलब्धियां और योगदान मेवाड़ के इतिहास में अमिट छाप छोड़ गए। सज्जन सिंह न केवल एक कुशल प्रशासक थे, बल्कि आधुनिक विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने मेवाड़ को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।

महाराणा सज्जन सिंह का प्रशासन और विकास कार्य

महाराणा सज्जन सिंह का शासनकाल उदयपुर के सामाजिक और भौतिक विकास के लिए जाना जाता है। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में सज्जनगढ़ का निर्माण है, जिसे “सज्जनगढ़ मानसून पैलेस” भी कहा जाता है। अरावली पर्वत श्रृंखला पर स्थित यह भव्य महल न केवल उनकी वास्तुकला के प्रति रुचि को दर्शाता है, बल्कि इसे मानसून के बादलों का अध्ययन करने और मेवाड़ की सुंदरता को निहारने के उद्देश्य से भी बनाया गया था।

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युवा महाराणा ने प्रशासन और विकास कार्यों में अपने समय से काफी आगे की सोच का परिचय दिया। उन्होंने कई आधुनिक बदलाव किए, जिनमें शामिल हैं:

नागरिक विकास और सार्वजनिक कार्य

  • सड़क निर्माण और सुधार: उन्होंने उदयपुर से नाथद्वारा तक नई सड़कों का निर्माण किया और पुरानी सड़कों को चौड़ा किया।
  • जल आपूर्ति प्रबंधन: पानी की पाइपलाइनों और टंकियों की मरम्मत के साथ-साथ पिछोला झील के विस्तार और उसके बांध को मजबूत किया।
  • नए सरकारी विभाग: खेती, वानिकी, और सार्वजनिक कार्यों के लिए नए सरकारी विभाग बनाए।

वन संरक्षण और पर्यावरण

महाराणा सज्जन सिंह ने वनीकरण पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने नए उद्यानों और एक सार्वजनिक चिड़ियाघर की स्थापना की, ताकि प्रकृति और पर्यावरण का संतुलन बना रहे।

न्यायिक सुधार

उन्होंने एक स्वतंत्र उच्च न्यायालय की स्थापना की, जो कार्यपालिका से पूरी तरह अलग था। यह उनके न्याय के प्रति निष्पक्ष दृष्टिकोण का प्रतीक था।

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शिक्षा और संस्कृति में योगदान

महाराणा सज्जन सिंह ने शिक्षा और साहित्य को प्रोत्साहन दिया।

  • “वीर विनोद” का प्रकाशन: उन्होंने अपने दरबारी कवि और इतिहासकार श्यामलदास को मेवाड़ का विस्तृत इतिहास लिखने का जिम्मा सौंपा। इसका परिणाम था “वीर विनोद” का प्रकाशन।
  • सज्जन वाणी विलास पुस्तकालय: उन्होंने इस पुस्तकालय की स्थापना की और श्यामलदास को संग्रहालय का अध्यक्ष नियुक्त किया।
  • विद्वानों को प्रोत्साहन: विद्वानों और विचारकों को अपने दरबार में आमंत्रित कर वे नियमित रूप से चर्चा और वाद-विवाद करते थे।

स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे विचारकों को भी उन्होंने उदयपुर बुलाया। स्वामी जी ने सज्जन निवास गार्डन के भीतर एक विश्राम गृह में रहकर अपने लेखन कार्य को पूरा किया।

तकनीकी उन्नति

उनके शासनकाल में उदयपुर में वायु प्रकाश व्यवस्था (एयर लाइटिंग सिस्टम) लागू किया गया। यह उनकी आधुनिक सोच और तकनीकी प्रगति को अपनाने की क्षमता को दर्शाता है।

सम्मान और उपाधियां

महाराणा सज्जन सिंह की प्रगतिशील सोच और मेवाड़ के विकास के प्रति उनके समर्पण को देखते हुए महारानी विक्टोरिया ने उन्हें “स्टार ऑफ इंडिया” के ग्रैंड कमांडर की उपाधि से सम्मानित किया। यह सम्मान 1881 में लॉर्ड रिपन द्वारा प्रदान किया गया।

अल्पायु में निधन

दुर्भाग्यवश, महाराणा सज्जन सिंह का शासनकाल बहुत छोटा रहा। 1884 में पेट की बीमारी के कारण उनकी असामयिक मृत्यु हो गई। उस समय वे केवल 25 वर्ष के थे। उनकी असामयिक मृत्यु ने मेवाड़ को एक प्रगतिशील और दूरदर्शी नेता से वंचित कर दिया।

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निष्कर्ष

महाराणा सज्जन सिंह ने मेवाड़ के इतिहास में अपने अल्पकालीन शासन के दौरान अनेकों प्रगतिशील कदम उठाए। उनकी दृष्टि और योगदान आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण, न्याय व्यवस्था, शिक्षा, और नागरिक विकास के क्षेत्र में जो नींव रखी, वह मेवाड़ को एक नई दिशा देने में सहायक सिद्ध हुई।

महाराणा सज्जन सिंह का जीवन इस बात का उदाहरण है कि एक सच्चा नेता अपने शासन के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थायी विरासत छोड़ सकता है।

“महाराणा सज्जन सिंह: एक शासक, जो समय से परे था।”

नोट: इस लेख में दी गई जानकारी सज्जनगढ़ पैलेस में स्थापित एक फोटो से ली गई है।

Maharana Sajjan Singh of Udaipur

 

Devesh Chauhan

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